अनोखी दोस्ती
अनोखी दोस्ती भाग 9
अब तक आपने पढ़ा
विनय कैसे अपनी गर्भवती बीवी को अपनी माता के कहने में आकर घर से बाहर निकाल देता है।
अब आगे….
कोयल घर से बाहर खड़े होकर सोचने लगती है ,कितने गंदे लोग हैं ।
उसके मन में अनगिनत प्रशन चल रहे थे ,कभी एक प्रश्न तो कभी दूसरा फिर उसने मन को ढांढस बंधाया। कि अच्छा हुआ चलो इन्होंने मुझे घर से बाहर निकाल दिया ,मैं अब अपने बच्चे को अपने ढंग से परवरिश दूंँगी ।
यहां रहता तो इनके जैसा ही बन जाता है मन में प्रश्नों का भंवर जाल एक के बाद एक उलझने पर कहीं भी विराम नहीं ले रहा था।
वह यह सोचने लगी, कि एक नारी की अलग पहचान क्या है उसकी क्या है अहमियत है….......?
क्या कुछ भी नहीं जिस पुरुष के साथ उसका विवाह हो जाए ,वह उसी धर्म उसी जाति की हो जाती है क्या पति उसकी पहचान है, वह अपनी मर्जी से जी नहीं सकती ना रो सकती है। उसे अपने लिए घर का एक कोना ढूंढना पड़ता है संभवत किसी गुलाम को भी इतनी गुलामी नहीं करनी पड़ती होगी। जितनी एक नारी करती है और यदि पति से किसी से कारणवश संबंध छूट जाए तो उसकी जिंदगी में बेबसी छा जाती है।
मन से टूटती बिखरती नारी को वक्त के थपेड़े ही मिलते हैं कभी चैन नहीं मिलता।.......
कभी मन कहता आधुनिक काल में नारी पूर्ण स्वतंत्र है, वह पुरुषों के समान कार्य करती है ।संस्कार ही नहीं शिक्षा भी ले रही है। शिक्षा के क्षेत्र में तो लड़कियां लड़कों से भी आगे हैं वह अब तो आजाद हो गई है आत्मनिर्भर है कहीं और नौकरी ढूंढ लेगी। स्वयं को अपने बच्चे के पालने के लिए तैयार करेगी।
अचानक उसके मन में प्रश्न आया सिया तो उसको कभी पसंद नहीं करती थी फिर सिया उसको क्यों अस्पताल लेकर गई। यह प्रश्न उसके लिए प्रश्न ही बन गया था
कोयल विचारों में उलझी रही उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें।
वह इसी उधेड़बुन में सेठ रायचंद के पास पहुंच जाती है
4 साल बाद कोयल को इस अवस्था में देखकर रीमा और रायचंद जी बहुत परेशान होते हैं।
रायचंद जी बोलते हैं मुझे तो रमेश जी सज्जन आदमी लगते थे मुझे नहीं पता था अंदर से कितने गलत संस्कारों वाले आदमी हैं ।
रीमा कोयल को अंदर ले गई उन्होंने उसको अच्छे से खाना पीना खिलाया और बोली ,"बेटा तुम अब परेशान मत हो तुम्हारे परेशानी के दिन खत्म हो गए हैं अब तुम यहां मेरी बेटी बनकर रहो।"
कोयल भी भावुकता के साथ बहने लगी और वह रोने लगी परिस्थितियां देखो क्या-क्या करवाती हैं।
रीमा जी ने उसको समझाया कि "बच्चे के लिए तुम्हें खुश रहना पड़ेगा देखो तुमने अपनी क्या शक्ल बना ली है जरा कभी देखो तो सही "
कोयल को थोड़ा समय लगा उसके मन में तो अभी भी विनय से बहुत प्यार था उसको लगता था कि यह लोग उसकी कोई खैर खबर लेंगे परंतु उनके मन में तो कोयल के लिए कोई भाव ही नहीं बचे थे।
होते भी क्यों? क्योंकि उन्हें तो एक सुंदर और पैसे वाली लड़की चाहिए थी उन्हें घर को संभालने सवारने वाली कोयल नहीं।
आखिरकार लालची लोग कोयल को रख कर भी क्या करते हैं क्योंकि अब तो कोयल की नौकरी चली गई थी।
सारी बातें सुनने के बाद रायचंद बोले मुझे माफ करना बेटे मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी खराब हो गई है।
नहीं आप ऐसा मत कहिए, इसमें मेरी किस्मत का कोई दोष रहा होगा।
"मैं उन लोगों के लिए रो रो कर अपनी जिंदगी खराब करने वाली नहीं है मैं अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी।" मैं और उन लोगों को सबक सिखा कर रहूंगी
मैं पढ़ी-लिखी हूं और मेरे पेट में मेरा अंश पल रहा है।
मैं उसको पैदा करूंगी और उसको अच्छे संस्कार दूंगी ।
पर अंकल जी "आपको तो खुश होना चाहिए" कि आपकी बेटी ऐसे लोगों के चुंगल में जाने से बच गई।
हां बेटा तुम सही कह रही हो" मैंने उसकी पसंद को एक चांस ना देकर उसकी बात ना मान कर गलती की है मैं अपने अहम में आ गया था"।
'पीहू पराग के साथ बहुत खुश है'।
"मुझे माफ कर दो बेटा!" दोनों हाथ जोड़ते हुए।
सेठ रायचंद अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थे ।वह कोयल को हमेशा के लिए साथ रहने के लिए प्रार्थना करते हैं।
रीमा भी उसका बहुत ध्यान रखने लगी उनको लगने लगा जैसे उनकी पीहू ही उनके पास वापस आई है।
"बेटी यह फ्रूट्स तो खा लो ऐसी के ऐसे ही रखी हैं।"
आंटी में "कितना खाऊंगी आप मुझे दिन भर खिलाते ही रहते हैं"
कोयल सेठ राय चंद्र जी के घर बहुत खुश थी।
दोनों पति-पत्नी उसका बहुत ध्यान रखते थे ऐसे ही महीनों गुजर गए और उसका प्रसव का टाइम भी आ गया
उसने बहुत सुंदर बेटे को जन्म दिया घर में सब खुश थे।
अब आगे जानने के लिए क्या विनय और सिया की शादी हुई विनय की जिंदगी में क्या हुआ यह सब जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।
अगर आपको मेरी यह कहानी अच्छी लगी है तो कृपया अपनी सुंदर-सुंदर समीक्षा देकर मुझे प्रोत्साहित करें। आपकी सुंदर समीक्षा ही तो मुझे लिखने की प्रेरणा देती हैं।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
Alka jain
27-Jun-2023 07:54 PM
Nice
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Shnaya
27-Jun-2023 06:48 PM
Nice one
Reply
वानी
11-Jun-2023 03:08 PM
Nice
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